रविवार, 25 दिसंबर 2016

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंश राय बच्चन

सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ|

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ|

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ|

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