ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंश राय बच्चन
सोचा करता
बैठ अकेले,
गत जीवन
के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी
सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ,
ऐसे मैं
मन बहलाता हूँ|
नहीं खोजने
जाता मरहम,
होकर अपने
प्रति अति निर्मम,
उर के घावों
को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ,
ऐसे मैं
मन बहलाता हूँ|
आह निकल
मुख से जाती है,
मानव की
ही तो छाती है,
लाज नहीं
मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ,
ऐसे मैं
मन बहलाता हूँ|
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