जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नही रहा - मिर्ज़ा ग़ालिब
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़
के क़ाबिल नही रहा,
जिस दिल
पे नाज़ था मुझे वो दिल नही रहा|
जाता हूँ
दाग-ए-हसरत-ए-हस्ती लिए हुए,
हूँ शम्मा-ए-कुश्ता
दरख़ुर-ए-महफ़िल नही रहा|
मरने की
आई दिल और ही तदबीर करके मैं,
शयन-ए-दस्त-ओ-बाज़ू-ए-क़ातिल
नही रहा|
बा-रु-ए-शश
जीहत दर-ए-ऐनबाज़ है,
या इमियज़-ए-नाकिस-ओ-क़ामिल
नही रहा|
वा कर दिए
हैं शौक़ ने बंद-ए-नक़ाब-ए-हुस्न,
गैर आज़
निगाह अब कोई हेल नही रहा|
गो मैं रहा
राहें-ए-सितम हाए रोज़गार,
लेकिन तेरे
ख़याल से गाफिल नही रहा|
दिल से हवा-ए-किश्त-ए-वफ़ा
मिट की वा,
हासिल सिवाए
हसरत-ए-हासिल नही रहा|
बेदाद-ए-इश्क़
से नही डरता मगर 'असद',
जिस दिल
पे नाज़ था मुझे वो दिल नही रहा|
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