सोमवार, 26 दिसंबर 2016

आ की मेरी जान में क़रार नही है - मिर्ज़ा ग़ालिब

आ की मेरी जान में क़रार नही है,
ताक़त-ए-बेदद-ए-इंतज़ार नही है|

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले,
नशा बा अंदाज़ा-ए-खुमार नही है|

गिरिया निकले है तेरी बाज़म से मुझ को,
हाय! के रोने पे इख्तियार नही है|

हम से अबस है गुमान-ए-रंजिश-ए-खातिर,
खाक में उशशाक़ की गुबार नही है|

दिल से उठा लुत्फ़-ए-जलवा हाय मानी,
गैर-ए-गुल आईना-ए-बाहर नही है|

क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे,
वाए! अगर अहद उस्तावर नही है|

तू ने क़सम मैकशी की खाई है 'ग़ालिब',
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नही है|

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